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गोपीगीत | | जगद्गुरु निम्बार्काचार्य श्रीश्यामशरण देवाचार्य श्री श्रीजी महाराज की मधुर वाणी में.

بواسطة Bhori Kishori
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تم نشره في 2019/03/04

•• गोपीगीतम् ••• आप सभी वैष्णव जन एवं भक्त जो ठाकुर जी चरणों में अपनी भक्ति ओर दृढ़ एवं गोपी भाव प्राप्त करना चाहते है , वह नित्य सोने से पहले भाव से "गोपीगीत" का श्रवण किया करे, क्योंकि श्रवण करने में उन संतो के भाव भी छिपे होते है । •• आप सभी गोपीगीत की हिंदी अर्थ, संस्कृत श्लोक , अंग्रेजी एवं गुजराती भाषा में PDF FILE डाउनलोड कर सकते है ।👇👇 https://goo.gl/892ZkK ••• गोपी गीत श्रीमदभागवत महापुराण के दसवें स्कंध के रासपंचाध्यायी का ३१ वां अध्याय है। इसमें १९ श्लोक हैं । रास लीला के समय गोपियों को मान हो जाता है । भगवान् उनका मान भंग करने के लिए अंतर्धान हो जाते हैं । उन्हें न पाकर गोपियाँ व्याकुल हो जाती हैं । वे आर्त्त स्वर में श्रीकृष्ण को पुकारती हैं, यही विरहगान गोपी गीत है । इसमें प्रेम के अश्रु,मिलन की प्यास, दर्शन की उत्कंठा और स्मृतियों का रूदन है । भगवद प्रेम सम्बन्ध में गोपियों का प्रेम सबसे निर्मल, सर्वोच्च और अतुलनीय माना गया है। गोप्य ऊचुः (गोपियाँ विरहावेश में गाने लगीं) जयति तेऽधिकं जन्मना व्रजः श्रयत इन्दिरा शश्वदत्र हि । दयित दृश्यतां दिक्षु तावका स्त्वयि धृतासवस्त्वां विचिन्वते ॥1॥ शरदुदाशये साधुजातसत्सरसिजोदरश्रीमुषा दृशा । सुरतनाथ तेऽशुल्कदासिका वरद निघ्नतो नेह किं वधः ॥2॥ विषजलाप्ययाद् व्याल राक्षसाद् वर्षमारुताद् वैद्युतानलात् । वृषमयात्मजाद् विश्वतोभया दृषभ ते वयं रक्षिता मुहुः ॥3॥ न खलु गोपिकानन्दनो भवानखिलदेहिनामन्तरात्मदृक् । विखनसार्थितो विश्वगुप्तये सख उदेयिवान्सात्वतां कुले ॥4॥ विरचिताभयं वृष्णिधुर्य ते चरणमीयुषां संसृतेर्भयात् । करसरोरुहं कान्त कामदं शिरसि धेहि नः श्रीकरग्रहम् ॥5॥ व्रजजनार्तिहन्वीर योषितां निजजनस्मयध्वंसनस्मित । भज सखे भवत्किंकरीः स्म नो जलरुहाननं चारु दर्शय ॥6॥ प्रणतदेहिनांपापकर्शनं तृणचरानुगं श्रीनिकेतनम् । फणिफणार्पितं ते पदांबुजं कृणु कुचेषु नः कृन्धि हृच्छयम् ॥7।। मधुरया गिरा वल्गुवाक्यया बुधमनोज्ञया पुष्करेक्षण । वीर मुह्यती रधरसीधुनाऽऽप्याययस्व नः ॥8॥ तव कथामृतं तप्तजीवनं कविभिरीडितं कल्मषापहम् । श्रवणमङ्गलं श्रीमदाततं भुवि गृणन्ति ते भूरिदा जनाः ॥9॥ प्रहसितं प्रिय प्रेमवीक्षणं विहरणं च ते ध्यानमङ्गलम् । रहसि संविदो या हृदिस्पृशः कुहक नो मनः क्षोभयन्ति हि ॥10॥ चलसि यद्व्रजाच्चारयन्पशून् नलिनसुन्दरं नाथ ते पदम् । शिलतृणाङ्कुरैः सीदतीति नः कलिलतां मनः कान्त गच्छति ॥11॥ दिनपरिक्षये नीलकुन्तलैर्वनरुहाननं बिभ्रदावृतम् । घनरजस्वलं दर्शयन्मुहुर्मनसि नः स्मरं वीर यच्छसि ॥12॥ प्रणतकामदं पद्मजार्चितं धरणिमण्डनं ध्येयमापदि । चरणपङ्कजं शंतमं च ते रमण नः स्तनेष्वर्पयाधिहन् ॥13॥ सुरतवर्धनं शोकनाशनं स्वरितवेणुना सुष्ठु चुम्बितम् । इतररागविस्मारणं नृणां वितर वीर नस्तेऽधरामृतम् ॥14॥ अटति यद्भवानह्नि काननं त्रुटिर्युगायते त्वामपश्यताम् । कुटिलकुन्तलं श्रीमुखं च ते जड उदीक्षतां पक्ष्मकृद्दृशाम् ॥15॥ पतिसुतान्वयभ्रातृबान्धवानतिविलङ्घ्य तेऽन्त्यच्युतागताः । गतिविदस्तवोद्गीतमोहिताः कितव योषितः कस्त्यजेन्निशि ॥16॥ रहसि संविदं हृच्छयोदयं प्रहसिताननं प्रेमवीक्षणम् । बृहदुरः श्रियो वीक्ष्य धाम ते मुहुरतिस्पृहा मुह्यते मनः ॥17॥ व्रजवनौकसां व्यक्तिरङ्ग ते वृजिनहन्त्र्यलं विश्वमङ्गलम् । त्यज मनाक् च नस्त्वत्स्पृहात्मनां स्वजनहृद्रुजां यन्निषूदनम् ॥18॥ यत्ते सुजातचरणाम्बुरुहं स्तनेष भीताः शनैः प्रिय दधीमहि कर्कशेषु । तेनाटवीमटसि तद्व्यथते न किंस्वित् कूर्पादिभिर्भ्रमति धीर्भवदायुषां नः ॥19॥ ••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• ●● निम्बार्क सम्प्रदाय से जुड़े वैष्णवजन निम्बार्क सम्प्रदाय की उपासना, वैष्णव सेवा नियम, आचार्यजनो की जीवनी , सम्प्रदाय के बारे में जानने के लिये एवं official sociol media से जुड़ने के लिए यहाँ CLICK करे 👇👇 https://linktr.ee/NimbarkSampraday https://linktr.ee/NimbarkSampraday ........................................................................... • Copyright Disclaimer- under section 107 of the copyright act 1976, allowance is made for "fair use" for purposes such as criticism, comment, news reporting, teaching, scholarship, and research. Fair use is a use permitted by copyright statute that might otherwise be infringing. Non-profit, educational or personal use tips the balance in favour of fair use. THIS VIDEO IS ONLY GOPI BHAV DEVOOTES, TRYING TO CLOSE THE HOLY FEET OF 'RADHAMAADHAV YUGAL SARKAR'. NO COPYRIGHT INFRINGEMENT INTENDED. All rights music belong to their respective Owners. राधे राधे

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